अहल्या n. इसका निर्देश शतपथ ब्राह्मण मे अहल्या मैत्रेयी नाम से मिलता है
[श. ब्रा. ३.३.४.१८] ;
[जै. ब्रा. २.७९] ;
[ष. ब्रा.१.१] ।
अहल्या n. इसका पिता मुद्गल
[भा. ९.२१] वध्र्यश्व को मेनका से यह कन्या हुई
[ह. वं. १.३२] । यह ब्रह्ममानसपुत्री है । ब्रह्मदेव ने इसे अत्यंत सुन्दर निर्माण किया । हल का अर्थ हैं विरुपता, तथा हल्य का अर्थ है विरुपता के कारण प्राप्त निंद्यत्व । इसे हल्य न होने के कारण, ब्रह्मदेव ने इसका नाम अहल्या रखा
[वा.रा.उ.३०.२५] । आगे चल कर, ब्रह्मदेव ने इसे शरद्वत गौतम के पास अमानत के रुप में रखा । उपवर होने पर उसने इसे ब्रह्मदेव पास वापस दे दिया ।
अहल्या n. शरद्वत गौतम मुनि का जितेंन्द्रियत्त्व तथा तपःसिद्धि देख कर, ब्रह्मदेव ने यह कन्या उसे भार्या कह कर दी
[वा.रा.उ. ३०.२९] ;
[विष्णु.४.१९] ;
[मत्स्य.५०] । परंतु इन्द्र, वरुण, अग्नि इ. देव, दानव, अथा अन्य राक्षसों के मन में भी इसके प्रति अभिलाषा थी । तब प्रत्येक के सामर्थ्य की परीक्षा देखी जावे, इस हेतु से ब्रह्मदेव ने निश्चय किया कि, जो व्यक्ति सर्वप्रथम पृथ्वी प्रदक्षीणा करेगा , उसे ही यह कन्या दी जावेगी । अहल्या के अभिलाषी प्रदक्षिणा करने लगे । परंतु अर्धप्रसूत धेनु पृथ्वी ही होने के कारण, गौतम ने उसकी प्रदक्षिणा की, तथा एक लिंग की प्रदक्षिणा कर के, वह ब्रह्मदेव के पास गया । गौतम प्रथम आया ऐसा जान कर, ब्रह्मदेव ने उसे अपनी कन्या दी । देवता, एक के पश्चात् एक, आने लगे । परंतु उन्हें मालूम हुआ कि, अहल्या तथा गौतम का विवाह हो गया । यह वार्ता सुन कर, इन्द्र को बहुत दुःख हुआ, क्यों कि, इन्द्र इससे प्रेम करता था । विवाहोपरान्त गौतम तथा अहल्या ब्रह्मगिरी पर रहने के लिये गये ।
अहल्या n. कुछ दिन बाद, गौतम को आश्रम से बाहर गया देख कर, इन्द्र गौतम के रुप में इसका उपभोग करने के लिये आया । गणेशपुराण में दिया है किं नारदद्वारा अहल्या के रुप की स्तुति की जाते ही, कामुक बन कर इन्द्र आया । तब पतिव्रताधर्मानुसार उसका तथा इसका समागम हुआ
[ब्रह्म. ८७,१२२] ;
[म.उ.१२] ;
[वा.रा.उ.३०. ३२] ;
[स्कंद.१.२.५२] । इंद्र काफी दिनों तक लगातर इसके यहॉं आता था, ऐसा उल्लेख ब्रह्मपुराण में है । परंतु यह इंद्र है ऐसा जान कर भी, इसने उससे समागम किया । उसके शरीर के दिव्य सुगंध से अहल्या ने यह जान लिया कि, यह मेरा पति नही है
[वा.रा.बा.४८.१९] । इतने में गौतम ऋषि आया । तब इन्द्र तथा अहल्या को बहुत डर लगा । दो घटिकाओं के बाद यह सामने आई, तथा पति का पदस्पर्श कर के इसने संपूर्ण वार्ता बताई
[गणेश. १.३०] । गौतम रोज नदी पर स्नान के लिये जाने पर भी, दूसरा गौतम विद्यार्थियों को दिखता था । एक बार जब इन्द्र भीतर था, तब गौतम के आते ही, विद्यार्थियों ने उसे भीतर गौतम दिखाया । तब क्रोधित हो कर गौतम ने इन्द्र तथा अहल्या को शाप दिया ।
अहल्या n. गौतम इन्द्र को शाप देनेवाला ही था कि, वह मार्जार के रुप में जल्दी जल्दी भागने लगा । गौतम को शंका आई, तथा डॉंट कर ‘कौन हैं? ऐसा उसने पूछा । तब इन्द्र मूर्तिमन्त उसके सामने खडा हो गया
[ब्रह्म. ८७. सृ. ५०] ;
[गणेश. १.३१] । तब गौतम ने उसे शाप दिया कि, तुम शत्रूओं के द्वारा पराभूत होगे । मनुष्यलोक में जारकर्म प्रारंभ करनेवालों के तुम उत्पादक हो, अतएव प्रत्येक जारकर्म का आधा पाप तुम्हारे माथे लगेगा । देवराजों को अक्षयस्थान कभी प्राप्त न होगा
[वा.रा.उ.३०] ;
[ब्रह्म.१२२] । तुम्हारे शरीर को सौ छेद हो जार्वेंगे
[म. अनु.४१,१५३] ;
[ब्रह्म. ८७] ;
[पद्म. सृ. ५०] । तुम वृषणरहित हो जाओगे
[वा.रा.बा.४८] ;
[लिंग. १.२९] । तदनंतर अहल्या की ओर मुडकर गौतम ने कहा, किसी को भी नही दिखोगी ऐसे रुप में तुम्हारा विध्वंस हो जावेगा, तथा तुम्हारे रुप का सर्वत्र विभाजन हो जावेगा । राम जब यहॉं आवेगें तब तुम्हारा उद्धार होगा
[वा.रा.बा.४८] ; उ. ३० । तुम शिला बन जाओगी
[आप. आ. सार.१.३] ;
[स्कंद.१.२.५२] ;
[गणेश.१.३१] । जनस्थान में तुम एक शुष्क नदी बनोगी
[आ.रा.सार.१.३] ;
[ब्रह्म.८७] । तुम्हारे देह पर केवल अस्थिचर्म रहेगा । सजीव प्राणियों के समान तुम्हारे शरीर पर मांस तथा नख उत्पन्न नही होगें, तथा तुम्हारे इस रुप के कारण स्त्रियों के मन में पापकर्म के प्रति दहशत उत्पन्न हो जावेगी
[पद्म. सृ. ५४] । इसपर अहल्या ने प्रार्थना की कि, इन्द्र आपका रुप धारण कर के आया था, इसलिये मैं पहचान न सकी । शरद्वत गौतम ने ध्यानस्थ हो कर यह जान लिया कि, यह अपराधी नही है, तथा उःशाप दिया कि, राम जब यहॉं आवेगा तब अपने पादस्पर्शं से तुम्हारा उद्धारा करेगा
[वा.रा.बा.४८.४९] ;
[वा.रा.उ. ३०] ;
[गणेश. १.३१] । इसकी मुक्ति के लिये गौतम ने कोटितीर्थ पर तप किया । तब यह मुक्त हुई । उससे अहल्यासरोवर निर्माण हुआ । उस आनंद के कारण ही, गौतम ने गौतमेश्वर लिंग की स्थापना की
[स्कंद.१.२.५२] । गोदावरी के साथ तुम्हारा संगम होने पर तुम पूर्ववत् बनोगी, ऐसा भी इसे उःशाप था
[ब्रह्म.८७] । शाप से मुक्त होने के पश्चात, यह पुनः पति के सहवास में गई । शाप के पूर्व इसे शतानन्द नामक पुत्र था । वह निमिवंशीय राजाओं का उपाध्याय था
[वा.रा.बा.५१] ;
[आ.रा.सार.१०३] । इसे दिवोदास नामक भाई था
[भा.९.२१] ;
[ह. वं. १.३२] । वह उत्तर पंचाल का राजा था । ‘अहल्यायै जार’ ऐसा इंन्द्र का गौरवपूर्ण वर्णन वेदों में है । इससे प्रतीत होता है कि, इंद्र-अहल्या कीं कथा रुपकात्मक होनी चाहिये ।
अहल्या n. इसने उत्तंक नामक अपने पति के शिष्य को सौदास की पत्नी के कुंडल गुरुदक्षिणा में लाने के लिये कहा था
[म.आश्व.५५] । इन्द्र के द्वारा इसके साथ किया गया व्यभिचार देवों के कार्य के लिये ही किया गया । क्योंकि, गौतम का तप अधिक हो गया था, अतएव उसका क्षय आवश्यक था
[वा.रा.बा.४९] । इसे गौतमी भी कहा गया है
[ब्रह्म.८७] । महर्षि गौतम के वन में अहल्याद्वारतीर्थ प्रसिद्ध है
[म.व.८२.९३] ।
अहल्या n. अहल्या तथा इन्द्र के संबंध की कथा रुपकात्मक है, ऐसा ब्राह्मणग्रंथ जैमिनीसूत्रों से प्रतीत होता है । (१) अहल्या रात्रि हैं, गौतम चन्द्र है तथा इन्द्र को सूर्य मान कर, यह रुपककथा निर्मित की गई है । उसका स्पष्टीकरण करते हुए बताया जाता है कि, इन्द्ररुपी सूर्य ने अहल्या रुपी रात्रि का घर्पण किया । यह एक निसर्गदृश्य है
[श. ब्रा.३.३.४.१८] । डॉ. रवीन्द्रनाथ टागोरजी ने अहल्या का रामद्वारा उद्धार का जो विवरण किया है वह सुन्दर है । (२) हल का अर्थ है नांगर, हल्या का अर्थ जोती हुई जमीन, तथा अहल्या का अर्थ है वंजर जमीन । अगस्त्य ऋषि ने दक्षिण में प्रथम वास किया, अर्थात् दक्षिण की अहल्या जमीन हल्या कर के उसका उद्धार किया, तथा उस अहल्या भुमि की शाप से मुक्तता की। इस प्रकार राम ने अहल्या का उद्धार किया, इसका अर्थ है, उसेन दक्षिण की बंजर भुमि उर्वरा बनाई ।
अहल्या II. n. इन्द्रद्युम्नपत्नी । यह इन्द्रु ब्राह्मण से रत हुई । इसके स्थूल शरीर को सजा दे कर कुछ लाभ नही हुआ, क्यो कि, यह मनोमय शरीर से तादाम्य हुई थी
[यो. वा.३.८९.८१] ।