साँचा तू गोपाल, साँच तेरा नाम है ।
जहवाँ सुमिरन होय, धन्य सो ठाम है ॥१॥
साँचा तेरा भगत, जो तुझको जानता ।
तीन लोककौ राज, मनै नहिं आनता ॥२॥
झूठा नाता छोड़ि तुझै लव लाइया ।
सुमिरि तिहारो नाम, परम पद पाइया ॥३॥
जिन यह लाहा पायो, यह जग आय कै ।
उतरि गयो भवपार, तेरो गुन गाइ कै ॥४॥
तुही मातु तुही पिता, तुही हित बन्धु है ।
कहत मलूका दास, बिना तुझ धुंध है ॥५॥