ना वह रीझै जप तप कीन्हे, ना आतमका जारे ।
ना वह रीझै धोती टाँगे, ना कायाके पखाँरे ॥
दाया करै धरम मन राखै, घरमें रहे उदासी ।
अपना-सा दुख सबका जानै, ताहि मिलै अबिनासी ॥
सहै कुसब्द बादहूँ त्यागै, छाँड़े, गरब गुमाना ।
यही रीझ मेरे निरंकारकी, कहत मलूक दिवाना ॥