दरद-दिवाने बावरे, अलमस्त फकीरा ।
एक अकीदा लै रहे, ऐसे मन धीरा ॥१॥
प्रेमी पियाला पीवते, बिदरे सब साथी ।
आठ पहर यो झूमते, ज्यों मात हाथी ॥२॥
उनकी नजर न आवते, कोइ राजा रंक ।
बंधन तोड़े मोहके, फिरते निहसंक ॥३॥
साहेब मिल साहेब भये, कछु रही न तमाई ।
कहैं मलूक किस घर गये, जहँ पवन न जाई ॥४॥