कौन मिलावै जोगिया हो, जोगिया बिन रह्यो न जाय ॥टेक॥
मैं जो प्यासी पीवकी, रटत फिरौं पिउ पीव ।
जो जोगिया नहिं मिलिहै हो, तो तुरत निकासूँ जीव ॥१॥
गुरुजी अहेरी मैं हिरनी, गुरु मारैं प्रेमका बान ।
जेहि लागै सोई जानई हो, और दरद नहिं जान ॥२॥
कहै मलूक सुनु जोगिनी रे,तनहिमें मनहिं समाय ।
तेरे प्रेमकी कारने जोगी सहज मिला मोहिं आय ॥३॥