हमसे जनि लागै तू माया ।
थोरेसे फिर बहुत होयगी, सुनि पैहैं रघुराया ॥१॥
अपनेमें है साहेब हमारा, अजहूँ चेतु दिवानी ।
काहु जनके बस परि जैहो, भरत मरहुगी पानी ॥२॥
तरह्वै चितै लाज करु जनकी, डारु हाथकी फाँसी ।
जनतें तेरो जोर न लहिहै, रच्छपाल अबिनासी ॥३॥
कहै मलूका चुप करु ठगनी, औगुन राउ दुराई ।
जो जन उबरै रामनाम कहि, तातें कछु न बसाई ॥४॥