महत्तमाख्यशिवव्रत
( स्कन्दपुराण ) - यह व्रत भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदको किया जाता है । इसके लिये जटामण्डित और त्रिशूल, कपाल तथा कुण्डिकादिसे संयुक्त, चन्द्रादिसे सुभोभित, त्रिनेत्र शिवजीकी सुवर्णमयीं मूर्ति बनवाकर भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदाको उसे विधिपूर्वक स्थापित किये हुए कलशपर स्थापितकर यथाप्राप्त उपचारोंसे पूजन करे और नैवेद्यमें अड़तालीस फल या मोदक अथवा मिष्टान्नादि अर्पण करके उनमेंसे १६ देवताओंको और १६ ब्राह्मणोंको अर्पण करे, शेष १६ अपने लिये रखे और ' प्रसीद देवदेवेश चराचरजगदगुरो । वृषध्वज महादेव त्रिनेत्राय नमो नमः ॥' से प्रार्थना करके दूश देनेवाली गौका दान करे और एक बार भोजन कर व्रतको समाप्त करे । इससे पापनाश होता है तथा राज्य, धन, पुत्र, स्त्री, आरोग्य और आयु आदिकी प्राप्ति होती है ।