भाद्रपद शुक्लपक्ष व्रत - महालक्ष्मीव्रत

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


महालक्ष्मीव्रत

( मदनरत्न, स्कन्दपुराण ) -

भाद्रपद शुक्ल अष्टमीसे आरम्भ करके आश्विन कृष्ण अष्टमीपर्यन्त प्रतिदिन १६ अञ्जलि कुल्ले करके प्रातःस्त्रानादि नित्यकर्मकर चन्दनादिनिर्मित्त लक्ष्मीकी प्रतिमाका स्थापन करे । उसके समीप सोलह सूत्रके डोरेमें १६ गाँठ लगाकर उनका

' लक्ष्म्यै नमः'

से प्रत्येक गाँठका पूजन करके लक्ष्मीकी प्रतिमाका पूजन करे । ( लक्ष्मीपूजनकी विशेष विधि ' सारसंग्रह ' में देखनी चाहिये ) पूजनके पश्चात्

' धनं धान्यं धरां हर्म्यं कीर्तिमायुर्यशः श्रियम् । तुरगान् दन्तिनः पुत्रान् महालक्ष्मि प्रयच्छ मे ॥'

से उक्त डोरेको दाहिने हाथमें बाँधे और हरी दूर्वाके १६ पल्लव और १६ अक्षत लेकर कथा सुने । इस प्रकार करके आश्विन कृष्ण अष्टमीको विसर्जन करे ।

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Last Updated : January 21, 2009

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