मौनव्रत
( स्कन्दपुराण ) - यह व्रत भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदको पूर्ण होता है, किंतु श्रावण शुक्ल पूर्णिमासे ही इसका प्रारम्भ किया जाता है । उस दिनी किसी जलशयपर जाकर स्त्रान करे और कोमल दूर्वाके १६ अड्कुरोंका डोरा बनाकर उसमें १६ गाँठ लगावे; फिर गन्धादिसे उसका पूजनकर स्त्री बाँये हाथमें और पुरुष दाहिने हाथमें धारण करे । इसके बाद जल लाने, गेहूँ पीसने, उनसे नैवेद्य बनाने और अन्य आयोजन करने आदिमें सर्वथा मौन रहे । तत्पश्चात् भाद्रपद कृष्ण प्रतिपदाको जलाशयपर जाकर स्त्रानादि नित्यकर्म करके देव, ॠषि, मनुष्य और पितरोंका तर्पण करे और फिर सदाशिवका आवाहनादि षोडशोपचारसे पूजन करके
' जन्मजन्मान्तरेष्वेव भावाभावेन यत् कृतम् । क्षन्तव्यं देव तत् सर्वं शम्भो त्वां शरणं गतः ॥'
से प्रार्थना करे । इस प्रकार १६ दिन करके भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदाको ब्राह्मण - भोजनादि करवाकर स्वयं भोजन करे तो इससे पुत्र - पौत्रादिकी प्राप्ति और पापादिकी निवृत्ति होती है ।