ॠषिपञ्चमी
( ब्रह्मपुराण ) - भाद्रपद शुक्ल पञ्चमीको ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र वर्णकी स्त्रियोंको चाहिये कि वे नद्यादिपर स्त्रानकर अपने घरके शुद्ध स्थलमें हरिद्रा आदिसे चौकोर मण्डल बनाकर उसपर सप्तर्षियोंका स्थापन करे और गन्ध, पुष्प, धूप, दीप तथा नैवेद्यादिसे पूजनकर
' कश्यपोऽन्निर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः । जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋष्यः स्मृता ॥
दहन्तु पापं मे सर्वं गृह्णन्त्वर्घ्यं नमो नमः ॥'
से अर्घ्य दें । इसके बाद अकृष्ट ( बिना बोयी हुई ) पृथ्वीमें पैदा हुए शाकादिका आहार करके ब्रह्मचर्यपालनपूर्वक व्रत करें । इस प्रकार सात वर्ष आठवें वर्षमें सप्तर्षियोंकी सुवर्णमय सात मूर्ति बनवाकर कलश - स्थापन करके यथाविधि पूजनकर सात गोदान और सात युग्मक ब्राह्मण - भोजन कराके उनका विसर्जन करें । किसी देशमें इसदिन स्त्रियाँ पञ्चताड़ी तृण एवं भाईके दिये हुए चावल आदिकी कौए, आदिको बलि देकर फिर स्वयं भोजन करती हैं ।