दशावतारव्रत
( भविष्योत्तर ) -
यह व्रत भाद्रपद शुक्ल दशमीको किया जाता है । एतत्रिमित्त किसी जलाशयपर जाकर स्त्रान करके देव और पितरोंका तर्पण करे और अपने हाथसे आटेकी दो परो ( लगभग पाँच छटाक आटा ) लेकर उसके अपूप ( पूआ ) बनावे और ' मत्स्य, कूर्म, वाराह, नरसिंह, त्रिविक्रम, राम, कृष्ण, परशुराम, बौद्ध और कल्कि ' इन दस अवतारोंका यथाविधि पूजन करे और अपूपादिका भोग लगाकर उनमेंसे दस देवताके, दस ब्राह्मणके और दस अपने रखकर भोजन करे । इस प्रकार दस वर्षतक करे । १ - अपूप, २ - घेवर, ३ - कासार, ४ - मोदक, ५ - सुहाल, ६ - सकरपारे, ७ - डोवठे, ८ - गुणा, ९ - कोकर और १० - पुष्पकर्ण - इन दस पदार्थोंमेंसे प्रतिवर्ष एक - एक पदार्थ देवता आदिको दस - दसकी संख्यामें अर्पण करे तो विष्णुलोककी प्राप्ति होती है ।