योनिरुपा कामाख्या देवी का स्वरुप
श्रीदेवी ने कहा - हे भगवन् ! हे प्रभो ! आप सभी धर्मो के ज्ञाता, सभी विद्याओं के स्वामी, सभी आगमों के प्रकाशक और सदैव आनन्दमय हदयवाले हैं । देव ! मैंने सुना है कि आपकी ही कृपा से समस्त तन्त्रों, सभी प्रकार की साधनाओं और सब प्रकार की विद्याओं की उपासना का फल मिलता है । हे प्रभो ! श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठ जो तंत्र आपको ज्ञात हो और अत्यंत श्रेष्ठ ब्रह्म प्रतिपादक जो अपौरुषेय ज्ञान आज भी गुप्त हो, उसे सुनने की मेरी इच्छा है ।
श्री शिव बोले - हे प्राणवल्लभे ! प्रश्न का उत्तर देता हूँ, सुनो ! वरदयिनी महामाया कामाख्या योनिरुपा हैं, वे नित्या हैं, वर और आनन्ददात्री हैं तथा महान ऐश्वर्य को बढ़ानेवाली हैं । वे सबकी जननी और रक्षाकारिणी हैं । वे सदैव स्थूल और सूक्ष्म सभी को मूलभूता, शक्तिस्वरुपा, कल्याणकारिणी हैं । मैं उन्हीं महाविद्या, विराट स्वरुपा ' कामाख्या ' का तन्त्र बताता हूँ । अत्यन्त सावधान चित्त से सुनो ।
सारे विश्व में जितने प्रकार की विद्याओं की साधना द्वारा साधक लोग जिन विविध सिद्धियों को प्राप्त करते हैं, उन सभी के क्षेत्र में एकमात्र ' कामाख्या ' ही वरदायिनी अर्थात् अभीष्ट फलदात्री हैं । साधकों के लिए ' कामाख्या ' सर्वविद्यास्वरुपिणी और सर्वासिद्धिदायिनी हैं । जो मनुष्य ' कामाख्या ' सर्वविद्यास्वरुपिणी और सर्वसिद्धिदायिनी हैं । जो मनुष्य ' कामाख्या ' के प्रति उदासीन रहता है, वह तीनों लोकों में निन्दित होता है । एकमात्र कामात्मिका महामाया ' कामाख्या ' को छोड़कर अन्य कोई भी सिद्धिरुपी सम्पदा देने में सक्षम नहीं है ।
' कामाख्या ' सदैव धर्म और अर्थ - स्वरुपा हैं । ' कामाख्या ' काम और मोक्षस्वरुपा हैं । ' कामाख्या ' ही निर्वाण मुक्ति और ' कामाख्या ' ही सायुज्य मुक्ति कही गई हैं । ' कामाख्या ' ही सालोक्य और सारुप्य मुक्तिस्वरुपा हैं । ' कामाख्या ' ही श्रेष्ठ गति हैं ।
हे देवि ! ब्रह्मत्व, विष्णुत्व, शिवत्व, चन्द्रत्व या समस्त देवताओं का देवत्व जिस शक्ति में निहित है, वही काम - रुपिणी ' कामाख्या ' हैं । सभी विद्याओं का जो कुछ लौकिक वाक्य है, वही ' कामाख्या ' हैं । सभी विद्याओं का जो कुछ लौकिक वाक्य है, वही ' कामाख्या ' हैं । सभी विद्याओं का जो कुछ लौकिक वाक्य है, वही ' कामाख्या ' हैं ।
महाविद्यारुपिणी सभी महादेवियाँ ' कामाख्या ' के ही स्वरुप हैं । हे प्रिय ! अपने हदय में उन सबका ध्यान कर स्वयं देख लो । तीनों लोकों में ' कामाख्या ' के अतिरिक्त अन्य कोई नही हैं । तन्त्रादि में लाखो - करोड़ो महाविद्यालयें वर्णित हैं । हे देवी ! इन सबमें सबसे श्रेष्ठ षोडशी ही मानी गई हैं । हे देवि ! उनकी मूल कारण जगदम्बा ' कामाख्या ' ही हैं । हे देवि ! जिस प्रकार चन्द्रमा की कान्ति प्रकट होती है, फिर लुप्त हो जाती है और पुनः प्रकट होती है, उसी प्रकार स्थावर और जंगम् तथा नित्य और अनित्य - जो कुछ भी है, वह सब ' कामाख्या ' के बिना उत्पन्न नहीं होता, वह सर्वथा सत्य है ।