कामाख्या देवी का मन्त्र
हे पार्वती ! श्रेष्ठ मन्त्र बताऊँगा, जिसके प्रसाद से ब्रह्मा, विष्णु, शिव भी और इन्द्रादि सभी देवता कामनापूर्ण होते हैं । हे देवी ! गन्धर्व, किन्नर और विद्याक्षर आदि तथा योगिनी, डाकिनी, भैरवी, नायिका आदि विद्याएँ जिसके प्रसाद से आकर अपने विषय को पूर्ण करती हैं । इस कामाख्या मन्त्र को पाकर स्वर्ग, मृत्यु - लोक और पाताल में जो - जो सिद्ध साधक हैं, वे श्रेष्ठ योग्यता को प्राप्त करते हैं । उसे आदर सहित सुनो ।
( त्रीं त्रीं त्रीं हूँ हूँ स्त्रीं स्त्रीं कामाख्ये ! प्रसीद स्त्रीं स्त्रीं हूँ हूँ त्रीं त्रीं त्रीं स्वाहा )
हे देवी ! अपने तीन बीज ( त्रीं त्रीं त्रीं ), उसके बाद दो ' क्रोध - बीज ' ( हूँ हूँ ) और तीन ' वधू - बीज ' ( स्त्रीं स्त्रीं स्त्रीं ), फिर ' कामाख्ये ' कहना चाहिए, तब ' प्रसीद ' शब्द और पूर्वोक्त बीजों की पुनः कल्पना करनी चाहिए । अन्त में दो ठ ' ( स्वाहा ) - यह सभी तन्त्रों में दुर्लभ मन्त्र कहा गया है ।
हे महादेवी ! उक्त मन्त्र के आदि में ' प्रणव ' ( ॐ ) लगाने से यह चारों वर्ग ( धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ) देनेवाली, महापापों को नष्ट करनेवाली साक्षात् देवी - स्वरुप बन जाता है । हे पार्वति ! इस मन्त्र का स्मरण करते ही सभी विघ्न उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं, जैसे अग्नि में पतंगे जलकर भस्म हो जाते हैं ।
मन्त्र लेते ही मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है । भोग और मोक्ष उसके हाथ में आ जाते हैं और वह सबका प्रिय बन जाता है । स्वयं लक्ष्मी उसे वरण कर लेती हैं और सरस्वती उसके मुख में निवास करती हैं तथा उसके पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र चिरंजीवी होते हैं ।
हे शंकरि ! पृथ्वी पर कामाख्या आदि सभी पीठों में उसी का लेख प्रचलित होता है, इसमें कोई सन्देह नहीं । उसके नाम का स्मरण कर सुयोग्य लोग प्रणाम करते हैं और उस नाम को सुनते ही हिंसक प्राणी खड़े होते हैं ।
स्वर्ग, मृत्युलोक और पाताल में जितनी सिद्धियाँ हैं, वे सभी साधकों की सेवा करती हैं, इसमें सन्देह नहीं । उस साधकेन्द्र को देखकर शास्त्रार्थ करनेवाला कुण्ठित हो जाता है और सभा में सभी सज्जन उसे करोड़ों सूर्य के समान तेजस्वी देखते हैं ।
हे महेश्वरी ! करोड़ों हजार जीभों से और करोड़ों सैकड़े मुखों से भी इस मन्त्र की महिमा का वर्णन मैं नहीं कर सकता । हे वरानने ! इसके न्यास, पूजन आदि सभी बातें पहले कही जा चुकी हैं किन्तु इसके पुरश्चरण में मन्त्र का जप छः हजार करना चाहिए । यथा विधि छः सौ होमादि करना चाहिए । इससे साधक को मन्त्र सिद्ध होता है और तब वह इसका प्रयोग करने में समर्थ होता है ।
हे देवी ! महादेवी का ध्यान सुनो, जो धन - धान्य और पुत्रदायक है तथा क्षणभर में ही दरिद्रता का नाश कर देता है, इसमें सन्देह नहीं ।
मैं योनिरुपा भवानी का भजन करता हूँ, जो कलिकाल के पापों का नाश करती हैं और समस्त लोगों को भोगविलास के उल्लास से पूर्ण कर देती हैं । वे अत्यन्त सुन्दर केशवाली, हँसमुखी हैं, त्रिनेत्रा हैं और उनकी सुन्दर कान्ति के आगे मेघों की छवि भी फीकी पड़ जाती है । रेशमी वस्त्रों से वे प्रकाशमान हैं । उनके हाथ अभय और वर मुद्राओं से युक्त हैं । रत्न - जटित आभूषणों से वे बड़ी भव्य हैं । देव - वृक्ष के नीचे पीठ रत्न - जटित सिंहासन पर वे विराजमान हैं । ब्रह्मा, विष्णु, महेश द्वारा वन्दिता वे बुद्धि वृद्धिस्वरुपा हैं । कामदेव के मनोमोहक बाण के समान वे अत्यन्त कमनीयता एवं सभी की कामनाओं को पूर्ण करनेवाली हैं ।
हे देवी ! यह ध्यान गुप्त से भी गुप्त है और दरिद्रता का नाशक है । सभी तन्त्रों में यह गुप्त है । तुम्हारे प्रेम से मैंने प्रकट किया है ।
श्लोक २२ से ३७ तक उक्त मन्त्र की साधना का वर्णन है, जो सर्वसाधारण के लिए नहीं है । जो विस्तार से जानकारी चाहें वे लेखक से सम्पर्क कर सकते हैं ।
॥ इति श्रीकामाख्या - तन्त्रे देवीश्वर - संवादे चतुर्थः पटलः ॥