कामाख्या स्तुतिः - उपसंहार

कामरूप कामाख्या में जो देवी का सिद्ध पीठ है वह इसी सृष्टीकर्ती त्रिपुरसुंदरी का है ।

ततो देवीं गुरुं चैव, प्रणमेद् बहुधा मुदा ।
दक्षिणां गुरवे दद्यात्, स्वर्ण - काञ्चन - मानतः ॥१॥
नाना - वस्त्रेरलङ्कारैर्गन्ध - माल्यादिभिस्तथा ।
तोषयेत् स्तुति - वाक्यैश्च, प्रणमेत् पुनरेव हि ॥२॥
कायेन मनसा वाचा, गुरुः कुर्यात् तथाऽऽशिषः ।
वचनैर्विविधैः शिष्यं, ग्राहयेत् तत्त्वमुत्तमम् ॥३॥
गुरुश्च भैरवैः सार्द्धं, शक्तिभिर्विहरेन्मुदा ।
भैरवाः शक्तयश्चापि, कुर्युराशीः सुयत्नतः ॥४॥
तथा त्रि - दिवसं व्याप्य, भोजयेद् भैरवान् बुधः ।
अष्टमे दिवसे शिष्यः, पुनः कुर्यात् तु सेचनम् ॥५॥
ताम्र - पात्रोदकैर्देवि ! विद्यां राज्ञां जपन् सुधीः ।
कुन्दुकां च तथा सप्त, सम्पत्ति - हेतवे प्रिये ! ॥६॥
शक्तिभ्यो भैरवेभ्योऽपि, ततो - वस्त्रादि - भूषणम् ।
दद्यात् प्रयत्नतः साधु विद्धि देवि ! समापनम् ॥७॥

अन्त में शिष्य को आनन्दपूर्वक भगवती एवं गुरुदेव के श्रीचरणों में बारम्बार प्रणाम करना चाहिए और स्वर्ण - मूल्य के अनुसार यथाशक्ति दक्षिणा गुरु को देनी चाहिए । विविध प्रकार के वस्त्रों, अलंकारों, सुगन्धित पदार्थो एवं पुष्प - माला आदि से तथा स्तुति - प्रार्थना - वचनों द्वारा उन्हें प्रसन्न करना चाहिए और पुनः प्रणाम करना चाहिए ।
गुरुदेव मनसा, वाचा और शरीर से शिष्य को आशीर्वाद दें । विविध उपदेशों से शिष्य को उत्तम तत्त्व समझाएँ । तब साधकों और शक्तियों के साथ गुरुदेव आनन्द से विहार करें । साधक एवं शक्तियाँ भी यत्नपूर्वक शिष्य को आशीर्वाद प्रदान करें ।
इस प्रकार बुद्धिमान् व्यक्ति तीन दिनों तक साधकों को भोजन कराएँ । आठवें दिन शिष्य पुनः अभिषेक कराएँ । उस समय हे प्रिये ! सम्पत्ति - ली के लिए सात कुम्भ स्थापित कर ताम्र - पात्रस्थ जल द्वारा श्रेष्ठ मन्त्र का जप करें । अन्त में शक्तियों और साधकों को भी प्रयत्नपूर्वक वस्त्राभूषण प्रदान करें ।

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Last Updated : July 08, 2009

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