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दिक्पाल देवताओंकी स्थापना
ईश्वरोन्मुख होनेके बाद मनुष्यको परमात्माके वास्तविक तत्वक परिज्ञान होने लगता है और फिर वह सदा सर्वदाके लिये जीवमुक्त हो जाता है, इसीलिये सारे कर्म शास्त्रकी आज्ञाके अनुसार होने चाहिये ।
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दिक्पाल
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दश दिक्पाल-पूजन
प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.
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अष्ट दिक्पाल
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دِکپال
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ଦିକ୍ପାଳ
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દિક્પાલ
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दिक्पालः
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திசையின் அதிபதி
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లోకాధిపతి
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ದಿಕ್ಪಾಲಕ
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ദിക്ക്പാലകന്
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দিকপাল
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dikpala
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दिक्स्वामी
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दिगदंति
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दिगिम
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दिगेश
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दिग्पाल
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दिग्राज
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दिवेश
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दिशापति
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दिगीश्वर
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दिग्वारण
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लोकाधिपति
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दक्
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दिशापाल
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सुवर्णाभ
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दिक्पति
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केतुमत
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कर्णवेध ( कान टोचणे ) संस्कार
‘ संस्कार ’ हे केवळ रूढी म्हणून करण्यापेक्षां त्यांचे हेतू जाणून ते व्हावेत अशी अनेकांची इच्छा असते. ज्यावेळीं एखाद्या घरांमध्यें शुभकार्य असते त्यावेळीं या गोष्टी सविस्तर माहीत असल्यास कार्य सुव्यवस्थित पार पडते असा अनुभव आहे.
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निऋति
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लोकपाल
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तृतीयपरिच्छेद - अन्नप्राशन संस्कार
निर्णयसिंधु ग्रंथामध्ये कोणत्या कर्माचा कोणता काल , याचा मुख्यत्वेकरून निर्णय केलेला आहे .
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अर्थालंकार - पर्यायोक्त
काव्यास ज्याच्या योगाने शोभा येते त्यास अलंकार असे म्हणतात.
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रामज्ञा प्रश्न - प्रथम सर्ग - सप्तक ६
गोस्वामी तुलसीदासजीने श्री. गंगाराम ज्योतिषीके लिये रामाज्ञा-प्रश्नकी रचना की थी, जो आजभी उपयोगी है ।
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२४ नक्षत्रे व नक्षत्र देवता
मूळ, आश्लेषा आणि ज्येष्ठा नक्षत्राच्या कोणत्याही चरणावर जन्मलेल्या बालकाची ब्राम्हणाकडून मंदिरात शांती करून घ्यावी. Performing yagna to the birth star will help the people to safeguard the life from worries and bad days.
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सुधर्मन्
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विनय पत्रिका - विनयावली १७९
विनय पत्रिकामे , भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त तुलसीदास भगवान् की भक्तवत्सलता व दयालुता का दर्शन करा रहे हैं।
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अध्याय बारहवाँ - श्लोक ४१ से ६०
देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।
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अध्याय बारहवाँ - श्लोक ६१ से ७९
देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।
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दिक
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दिग
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अध्याय पहला - श्लोक ८१ से १००
देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।
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खंड ४ - अध्याय ५२
मुद्गल पुराणात श्री गणेशाच्या आठ अवतारांचे वर्णन आहे.
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प्रथम पाद - देवताओंकी पराजय
` नारदपुराण’ में शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, और छन्द- शास्त्रोंका विशद वर्णन तथा भगवानकी उपासनाका विस्तृत वर्णन है।
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आश्लेषा नक्षत्र देवता स्थापन
मूळ, आश्लेषा आणि ज्येष्ठा नक्षत्राच्या कोणत्याही चरणावर जन्मलेल्या बालकाची ब्राम्हणाकडून मंदिरात शांती करून घ्यावी. Performing yagna to the birth star will help the people to safeguard the life from worries and bad days.
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प्र.के.अत्रे - अहा , सजवुनी लालतांबडा मु...
प्रल्हाद केशव अत्रे (१३ऑगस्ट १८९८ - १३ जून १९६९) हे मराठीतील नावाजलेले लेखक, कवी, नाटककार, मराठी व हिंदी चित्रपट निर्माते, चित्रपट कथाकार, चरित्र लेखक, शिक्षणतज्ञ, संपादक, पत्रकार, राजकारणी, हजरजबाबी वक्ते आणि संयुक्त महाराष्ट्राच्या चळवळीचे एक प्रमुख नेते होते.
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अध्याय ७४ वा - श्लोक १० ते १५
श्रीकृष्णदयार्णवकृत हरिवरदा
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अध्याय साँतवा - श्लोक २१ से ४०
देवताओंके शिल्पी विश्वकर्माने, देवगणोंके निवासके लिए जो वास्तुशास्त्र रचा, ये वही ’ विश्वकर्मप्रकाश ’ वास्तुशास्त्र है ।
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