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कालकंज

   
Script: Devanagari

कालकंज     

कालकंज n.  ये असुर थे । ये आकाश में रहते थे [अ.वे.६.८०.२] । इनका पराभव इंद्र ने किया । ये इंद्र के पराक्रम का एक स्थान है [क. सं.८.१] ;[मै. सं.१.६.९] ;[तै. ब्रा.१.१.२. ४-६] ;[कौ. उ. ३.१] । इन्होंने स्वर्गप्राप्ति के लिये अग्निचयन अनुष्ठान आरंभ किया । तब इसका पराभव करने के लिये, इंद्र वेषांतर कर इनके पास आया तथा इससे उसने कहा, ‘हे असुरों! मैं ब्राह्मण हूँ । तुम्हारे अनुष्ठान में मुझे लेलो । मुझे भी स्वर्ग जाना है’ । असुर मान गये । चयन के लिये असुर इष्टक (ईटें) जमा कर रहे थे । उनके साथ साथ इंद्र ने अपनी एक ईट जमायी तथा अपनी चित्रा नामक ईट का मन में स्मरण रखा । अनुष्ठान समाप्त होने के पश्चात् चयन पर आरोहण कर असुर स्वर्ग जाने लगे । इतने में चयन में से इंद्र ने अपनी ईट धीर से निकाल ली । जिससे चयनरुपी श्येनपक्षी ध्वस्त हो कर नीचे गिरा, तथा असुरों का स्वर्ग जाना रुक गया । कुछ लोग स्वर्ग की आधी राह में थे । चयनध्वंस की घटना के कारण वे मकोडा नामक छैः पैरों के कीडे बने । दो असुर श्रद्धातिशय के कारण स्वर्ग जा पहुँचे, परंतु चयनभ्रष्टता के पाप से दोनों देवलोक में श्वान बने [तै. ब्रा.१.१.२] ; कालकेय देखिये ।

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