रंभा n. एक सुविख्यात अप्सरा, जो कश्यप एवं प्राधा की कन्याओं में से एक थी
[म. आ. ५९.४८] । यह कुवेरसभा में रहती थी । अर्जुन के जन्मोत्सव में, एवं अष्टावक्र के स्वागतसमारोह में इसने नृत्य किया था
[म. आ. ११४.५१] ;
[अनु. १९.४४] । इसने इंद्रसभा में भी अर्जुन के स्वागतार्थ नृत्य किया था
[म. व. ४४.२९] । कुबेरपुत्र नलकूबर के साथ यह पत्नी के नाते से रहती थी । एक बार रावण ने इस संबंध में इसकी खिल्ली उडायी, जिस कारण क्रुद्ध हो कर नलकूबर ने रावण को शाप दिया, ‘तुझे न चाहनेबाली किसी स्त्री से अगर तू बलात्कार करेगा, तो तुझे प्राणों से हाथ धोना पडेगा’ । नलकूबर के इसी शाप के कारण राम के द्वारा रावण का वध हुआ
[म. व. २६४.६८-६९] । विश्वामित्र के तपोभंग के लिए इन्द्र ने इसे उसके पास भेजा था । किन्तु विश्वामित्र ने इन्द्र के षङयंत्र को पहचान लिया, एवं क्रुद्ध हो कर इसे शाप दिया, ‘तुम हजारों वर्षो तक शिला बन कर रहोगी
[म. अनु. ३.११] । वाल्मीकि रामायण के अनुसार, विश्वामित्र ने इसे ब्राह्मण के द्वारा उद्धार होने का उ:शाप भी प्रदान किया था । स्कंद में श्वेतमुनि के द्वारा इसका उद्धार होने की कथा प्राप्त है । एकबार श्वेतमुनि का एक राक्षसी से युद्ध हुआ । उस समय श्वेतमुनि के द्वारा छोडे गये ‘वायु अस्त्र’ के कारण वह राक्षसी एवं शिलाखंड बनी हुयी रंभा, दोनों भी आँधी में फँसकर ‘कपितीर्थ’ में जा गिरी । इस कारण रंभा एवं राक्षसी का रूप प्राप्त हुयी वारांगना दोनों भी मुक्त हो गयी
[स्कंद. ३.१.३९] । महाभारत में अन्यत्र इसे तुंबक नामक गंधर्व की पत्नी कहा गया है
[म. उ. १०.११.११२] । किन्तु वाल्मीकि रामायण में इससे संबंध रखने के कारण, तुंबरु को विराध नामक राक्षस का रूप प्राप्त होने की कथा प्राप्त है
[वा. रा. अर. ४.१६-१९] । इससे प्रतीत होता है कि, तुंबरु इसका वास्तव पति नही था ।
रंभा II. n. मयासुर की पत्नी, जिससे इसे निम्नलिखित छ:संतान उत्पन्न हुयी थी---मायाविन्, दुंदुभि, महिष, कालिका, अजकर्ण एवं मंदोदरी
[ब्रह्मांड. ३.६.२८-२९] ।