सुदृढ़ भक्तिरुपी प्रत्यच्चा से चिन्तनरुपी धनुष को खींचकर , शिवस्मरणरुपी अमोघ बाणॊं से पापरुपी शत्रुओं को जीतकर विजयी , मनीषी सानन्द अचल राजलक्ष्मी -मोक्ष -प्राप्त करते हैं । ॥७१॥
( छीपे हुए खजाने को ढूँढने के लिये , कहते हैं , पहले आँखों में जादू का अच्चन लगाना होता है । फीर प्रवेश प्राप्त करने के लिये मन्त्रों सहित बलि दी जाती है ) ध्यानरुपी अच्चन आँखों में लगाकर , ईश्वरनामरुपी मन्त्रों से युक्त आवश्यक बलि द्वारा अंधकारयुक्त प्रदेश में मार्ग निकाल कर , देवताओं से सेवित , और सर्पो के आभूषणों से सुशोभित , आपके चरण कमलों को जो प्राप्त करते हैं वे ही धन्य हैं । ॥७२॥
हे मेरे मन ! भगवान् शिव के चरण -कमलों का आश्रय ले । ये चरण कमल उस जुती हुई , पानी से भरी हुई , मुक्तिरुपी महाऔषध की क्यारी के समान हैं जिसकीं मुझे अभिलाषा है । यह पादपद्मभूमि अत्यंत दुर्लभ है । जब श्री और भू के पति , महाविष्णु ने शूकर रुप धारण कर इसे खोजने का प्रयत्न किया तो वे भी सफल नहीं हुए । ॥७३॥
मेरा मन आशा -दुराशा , क्लेश और बुरी भावनाओ की दुर्गन्ध से भरा हुआ है । दिगम्बर भगवान शिव के चरण -कमलों की दिव्य सुगन्ध , इस दुर्गन्ध को हटाकर , मेरे चित्तरुपी वक्से को सुगन्धित करे। ॥७४॥
हे कामदेव को पराजित करनेवाले जगत के स्वमी ! आप बैल की सवारी करते हैं । मेरा चित्तरुपी तुरड्र . आपकी सेवा के लिये उपयुक्त है । यह शुभदर्शन है , मनोहर विचित्र गतिवाला है , और द्रुतगामी है । यह अपने स्वामी के प्रत्येक आशय को समझ सकता है , और शुभलक्षणों से सुशोभित है । आप इस पर सवार होकर विचरण करें । ॥७५॥