१६६.
राग कल्यान
हरषि मुरली नाद स्याम कीन्हौ।
करषि मन तिहु भुवन, सुनि थकि रह्यौ पवन,
ससिहि भूल्यौ गवन, ग्यान लीन्ही ॥१॥
तारका गन लजे, बुद्धि मन मन सजे,
तबै तनु सुधि तजे, सब्द लाग्यौ।
नाग नर मुनि थके, नभ धरनि तन तके,
सारदा स्वामि, सिब ध्यान जाग्यौ ॥२॥
ध्यान नारद टर्यौ, सेस आसन चल्यौ,
गई बैकुंठ धुनि, मगन स्वामी।
कहत श्री प्रिया सौं राधिका रमन, ए
सूर प्रभु स्याम के दरस कामी ॥३॥
१६७.
राग बिहागरौ
मुरली धुनि बैकुंठ गई।
नारायन कमला सुनि दंपति अति रुचि हृदै भई ॥१॥
सुनौ प्रिया ! यह बानी अद्भुत, बृंदाबन हरि देखौ।
धन्य धन्य श्रीपति मुख कहि कहि, जीवन व्रज कौ लेखौ ॥२॥
रास बिलास करत नँद नंदन, सो हम तै अति दूरि।
धनि बन धाम, धन्य व्रज धरनी, उडि लागै जौ धूरि ॥३॥
यह सुख तिहू भुवन मैं नाही, जो हरि सँग पल एक।
सूर निरखि नारायन इकटक, भूले नैन निमेष ॥४॥
१६८.
राग कल्यान
अब हरि नाद प्रकास्यौ।
जंगम जड, थावर चर कीन्हे, पाहन जलज बिकास्यौ ॥१॥
स्वर्ग पताल दसौं दिसि पूरन, धुनि आच्छादित कीन्हौ।
निसि हरि कलप समान बढाई, गोपिनि कौं सुख दीन्हौ ॥२॥
मैमत भए जीव जल थव के, तन की सुधि न सम्हार।
सूर स्याम मुख बेनु मधुर धुनि उलटे सब ब्यौहार ॥३॥
१६९.
राग पूरबी
मुरली गति बिपरीति कराई।
तिहूँ भुवन भरि नाद समान्यौ, राधा रमन बजाई ॥१॥
बछरा थन नाही मुख परसत, चरति नाहि तृन धेनु।
जमुना उलटी धार चली बहि, पवन थकित सुनि बेनु ॥२॥
बिह्वल भए, नाहिं सुधि काहू, सुर गंध्रब, नर नारि।
सूरदास सब चकित जहाँ तहँ ब्रज-जुबतिनि सुखकारि ॥३॥
१७०.
राग केदारौ
मुरली सुनत, अचल चले।
थके चर, जल झरत पाहन, बिफल बृच्छ फले ॥१॥
पै स्त्रवत गोधननि थर तै, प्रेम पुलकित गात।
झुरे द्रुम अंकुरित पल्लव, बिटप चंचल पात॥२॥
सुनत खग मृग मौन साध्यौ, चित्र की अनुहारी।
धरनि उमँगि न मारित उर मै, जती जोग बिसारि ॥३॥
ग्वाल गृह गृह सबै सोवत, उहै सहज सुभाइ ।
सूर प्रभु रस रास के हित सुखद रैनि बढाइ ॥४॥