आरोगो रघुबीर महा प्रभु आरोगो ॥ टेक ॥
प्रफुलित होय परोसे जननी ढौरत सीत सीमर ॥१॥
कनक थार जडित कठोरा मेवा मिठाई अरु खीर ॥२॥
छपन भोग छत्तीसो वेंजन नानाविधिको सीर ॥३॥
राम लछिमन भरत शत्रुघन राजत चारो बीर ॥४॥
जनक सुता झारी भरी लाई सरजूजीको नीर ॥५॥
चोवा चंदन मिली केसर घोरी चरच्यो श्याम सरीर ॥६॥
आचबन करके बीरी लीजे गाबत दास कबीर ॥७॥