दाता गुरु बिन कोय नहीं । जग मांगन हारा हो ॥ध्रु०॥
तीन लोकके उपर थारा सबके और किरताराहो ।
क्या राजा क्या छत्रपती सब हाथ पसारा हो ॥ दाता०॥१॥
वहाके उप्पर एक धाम है मारे साथ पुकारा हो ।
करमकी बलिया धारके मोरा हंसा उभारा हो ॥२॥
तीरथ तारन सबही गये क्या तीरथ ओ तारा हो ।
काम क्रोध तोरे धोया नहीं क्या अंग पखारा हो ॥३॥
देवल मंदिर जन गये वहां का तुज पाया हो ।
कोट तीरथ फल होत ओई एक साधन जमाया हो ॥४॥
मिया नबियाके बागमें मसजद एक काया हो ।
झ्याडुदे तन घर ज्ञानका सद्गुरु फरमाया हो ॥५॥
कहत कबीर धरमदासकूं ढुंढत ढुंढ्त धो ले हो ।
अंधेकुं सुजत नहीं घट घटमाही ढोले हो ॥६॥