आंजन आंजाये निज सोय ॥ध्रु०॥
जाय आंचन त्रिभिर नासे । दृष्टी निर्मल होय ॥ आं०॥१॥
सुगड धोबी सरस साबन । मयल डारे धोय ॥२॥
बैदसो परपीड मेट । बहोरन पीडा होय ॥३॥
धोनु सो जाके ग्रहे अम्रबल । धोय लीजो बिन लोय ॥४॥
ताहे पीया पीया पास पहूंचे । बहोरन पीवना होय ॥५॥
गुरुसो जो मुक्त दाता । करम डारे धोय कहे कबीरा कसा दिल होय ।
आंजन आंजीये निज सोय ॥६॥