हरि हरि हरि हरि रट रसना मम ।
पीवति खाति रहति निधरक भई होत कहा तो को स्त्रम ॥
तैं तो सुनी कथा नहिं मोसे, उधरे अमित महाधम ।
ग्यान ध्यान जप तप तीरथ ब्रत, जोग जाग बिनु संजम ॥
हेमहरन द्विजद्रोह मान मद, अरु पर गुरु दारागम ।
नामप्रताप प्रबल पावकके, होत जात सलभा सम ॥
इहि कलिकाल कराल ब्याल, बिषज्वाल बिषम भोये हम ।
बिनु इहि मंत्र गदाधरके क्यों, मिटिहै मोह महातम ॥