भजन - सुंदर स्याम सुजानसिरोमन...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


सुंदर स्याम सुजानसिरोमनि, देउँ कहा कहि गारी हो ।

बड़े लोगके औगुन बरनत, सकुचि उठत मन भारी हो ॥१॥

को करि सकै पिताको निरनौ जाति-पाँति को जाने हो ।

जाके मन जैसीयै आवत तैसिय भाँति बखानै हो ॥२॥

माया कुटिल नटी तन चितवत कौन बड़ाई पाई हो ।

इहि चंचल सब जगत बिगोयो जहँ तहँ भई हँसाई हो ॥३॥

तुम पुनि प्रगट होइ बारे तें कौन भलाई कीनी हो ।

मुकुति-बधू उत्तम जन लायक लै अधमनिकों दीनी हो ॥४॥

बसि दस मास गरभ माताके इहि आसा करि जाये हो ।

सो घर छाँड़ि जीभके लालच भयो हो पूत पराये हो ॥५॥

बारेतें गोकुल गोपिनके सूने घर तुम डाटे हो ।

पैठे तहाँ निसंक रंक लौं दधिके भाजन चाटे हो ॥६॥

आपु कहाइ धनीको ढोटा भात कृपन लौं माँग्यो हो ।

मान भंग पर दूजैं जाचतु नैकु सँकोच न लाग्यो हो ॥७॥

लोलुप तातें गोपिनके तुम सूने भवन ढँढोरे हो ।

जमुना न्हात गोप-कन्यनिके निलज निपट पट चोरे हो ॥८॥

बैनु बजाइ बिलास करत बन बोलि पराई नारी हो ।

ते बातें मुनिराज सभामें ह्वै निसंक बिस्तारी हो ॥९॥

सब कोउ कहत नंदबाबाको घर भर्‌यो रतन अमोलै हो ।

गर गुंजा सिर मोर-पखौवा गायनके सँग डोलै हो ॥१०॥

साधु-सभामें बैठनिहारो कौन तियन सँग नाचै हो ।

अग्रज संग राज-मारगमें कुबजहिं देखत लाचै हो ॥११॥

अपनि सहोदरि आपुहि छल करि अरजुन संग नसाई हो ।

भोजन करि दासी-सुतके घर जादव जाति लजाई हो ॥१२॥

लै लै भजै नृपतिकी कन्या यह धौं कौन बड़ाई हो ।

सतभामा गोतमें बिबाही उलटी चाल चलाई हो ॥१३॥

बहिन पिताकी सास कहाई नैकहुँ लाज न आई हो ।

ऐसेइ भाँति बिधाता दीन्हीं सकल लोक ठकुराई हो ॥१४॥

मोहन बसीकरन चट चेटक मंत्र जंत्र सब जानै हो ।

तात भले जु भले सब तुमको भले भले करि मानै हो ॥१५॥

बरनौं कहा जथा मति मेरी बेदहु पार न पावै हो ।

भट्ट गदाधर प्रभुकी महिमा गावत ही उर आवै हो ॥१६॥

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Last Updated : December 21, 2007

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