सुंदर स्याम सुजानसिरोमनि, देउँ कहा कहि गारी हो ।
बड़े लोगके औगुन बरनत, सकुचि उठत मन भारी हो ॥१॥
को करि सकै पिताको निरनौ जाति-पाँति को जाने हो ।
जाके मन जैसीयै आवत तैसिय भाँति बखानै हो ॥२॥
माया कुटिल नटी तन चितवत कौन बड़ाई पाई हो ।
इहि चंचल सब जगत बिगोयो जहँ तहँ भई हँसाई हो ॥३॥
तुम पुनि प्रगट होइ बारे तें कौन भलाई कीनी हो ।
मुकुति-बधू उत्तम जन लायक लै अधमनिकों दीनी हो ॥४॥
बसि दस मास गरभ माताके इहि आसा करि जाये हो ।
सो घर छाँड़ि जीभके लालच भयो हो पूत पराये हो ॥५॥
बारेतें गोकुल गोपिनके सूने घर तुम डाटे हो ।
पैठे तहाँ निसंक रंक लौं दधिके भाजन चाटे हो ॥६॥
आपु कहाइ धनीको ढोटा भात कृपन लौं माँग्यो हो ।
मान भंग पर दूजैं जाचतु नैकु सँकोच न लाग्यो हो ॥७॥
लोलुप तातें गोपिनके तुम सूने भवन ढँढोरे हो ।
जमुना न्हात गोप-कन्यनिके निलज निपट पट चोरे हो ॥८॥
बैनु बजाइ बिलास करत बन बोलि पराई नारी हो ।
ते बातें मुनिराज सभामें ह्वै निसंक बिस्तारी हो ॥९॥
सब कोउ कहत नंदबाबाको घर भर्यो रतन अमोलै हो ।
गर गुंजा सिर मोर-पखौवा गायनके सँग डोलै हो ॥१०॥
साधु-सभामें बैठनिहारो कौन तियन सँग नाचै हो ।
अग्रज संग राज-मारगमें कुबजहिं देखत लाचै हो ॥११॥
अपनि सहोदरि आपुहि छल करि अरजुन संग नसाई हो ।
भोजन करि दासी-सुतके घर जादव जाति लजाई हो ॥१२॥
लै लै भजै नृपतिकी कन्या यह धौं कौन बड़ाई हो ।
सतभामा गोतमें बिबाही उलटी चाल चलाई हो ॥१३॥
बहिन पिताकी सास कहाई नैकहुँ लाज न आई हो ।
ऐसेइ भाँति बिधाता दीन्हीं सकल लोक ठकुराई हो ॥१४॥
मोहन बसीकरन चट चेटक मंत्र जंत्र सब जानै हो ।
तात भले जु भले सब तुमको भले भले करि मानै हो ॥१५॥
बरनौं कहा जथा मति मेरी बेदहु पार न पावै हो ।
भट्ट गदाधर प्रभुकी महिमा गावत ही उर आवै हो ॥१६॥