जय महाराज ब्रजराज-कुल-तिलक
गोबिंद गोपीजनानंद राधारमन ।
नंद-नृप-गेहिनी गर्भ आकर रतन
सिष्ट-कष्टद धृष्ट दुष्ट दानव-दमन ॥१॥
बल-दलन-गर्व-पर्वत-बिदारन
ब्रज-भक्त-रच्छा-दच्छ गिरिराजधर धीर ।
बिबिध बेला कुसल मुसलधर संग लै
चारु चरणांक चित तरनि तनया तीर ॥२॥
कोटि कंदर्प दर्पापहर लावन्य धन्य
बृंदारन्य भूषन मधुर तरु ।
मुरलिकानाद पियूषनि महानंदन
बिदित सकल ब्रह्म रुद्रादि सुरकरु ॥३॥
गदाधरबिषै बृष्टि करुना दृष्टि करु
दीनको त्रिविध संताप ताप तवन ।
मैं सुनी तुव कृपा कृपन जन-गामिनी
बहुरि पैहै कहा मो बराबर कवन ॥४॥