है हरितें हरिनाम बड़ेरो ताकों मूढ़ करत कत झेरो ॥१॥
प्रगट दरस मुचुकुंदहिं दीन्हों, ताहू आयुसु भो तप केरो ॥२॥
सुतहित नाम अजामिल लीनों, या भवमें न कियो फिर फेरो ॥३॥
पर-अपवाद स्वाद जिय राच्यो, बृथा करत बकवाद घनेरो ॥४॥
कौन दसा ह्वै है जु गदाधर, हरि हरि कहत जात कहा तेरो ॥५॥