झूलत नागरि नागर लाल ।
मंद मंद सब सखी झुलावति गावति गीत रसाल ॥
फरहराति पट पीत नीलके अंचल चंचल चाल ।
मनहुँ परसपर उमँगि ध्यान छबि, प्रगट भई तिहि काल ॥
सिलसिलात अति प्रिया सीस तें, लटकति बेनी नाल ।
जनु पिय मुकुट बरहि भ्रम बसतहँ, ब्याली बिकल बिहाल ॥
मल्ली माल प्रियाकी उरझी, पिय तुलसी दल माल ।
जनु सुरसरि रबितनया मिलिकै, सोभित स्त्रेनि मराल ॥
स्यामल गौर परसपर प्रति छबि, सोभा बिसद बिसाल ।
निरखि गदाधर रसिक कुँवरि मन, पर्यो सुरस जंजाल ॥