भजन - आजु ब्रजराजको कुँवर बन...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


आजु ब्रजराजको कुँवर बनते बन्यो,

देखि आवत मधुर अधर रंजित बेनु ।

मधुर कलगान निज नाम सुनि स्त्रवन-पुट,

परम प्रमुदित बदन फेरि हूँकति धेनु ॥१॥

मदबिघूर्णित नैन मंद बिहँसनि बैन,

कुटिल अलकावली ललित गोपद रेनु ।

ग्वाल-बालनि जाल करत कोलाहलनि,

सृंग दल ताल धुनि रचत संचत कैनु ॥२॥

मुकुटकी लटक अरु चटक पटपीतकी

प्रकट अकुरित गोपी मनहिं मैनु ।

कहि गदाधरजु इहि न्याय ब्रजसुंदरी

बिमल बनमालके बीच चाहतु ऐनु ॥३॥

N/A

References : N/A
Last Updated : December 21, 2007

Comments | अभिप्राय

Comments written here will be public after appropriate moderation.
Like us on Facebook to send us a private message.
TOP