गोत्रिरात्र
( स्कन्दपुराण ) -
यह व्रत कार्तिक कृष्ण त्रयोदशीसे दीपावलीके दिनतक किया जाता है । इसमें उदयव्यापिनी तिथि ली जाती है । यदि वह दो दिन हो तो पहले दिन व्रत करे । इस व्रतके लिये गोशाला या गायोंके आने - जानेके मार्गमें आठ हाथ लम्बी और चार हाथ चौड़ी वेदी बनाकर उसपर सर्वतोभद्र लिखे और उसके ऊपर छत्रके आकारका वृक्ष बनाकर उसमें विविध प्रकारके फल, पुष्प और पक्षी बनाये । वृक्षके नीचे मण्डलके मध्य भागमें गोवर्द्धनभगवानकी; उनके वाम भागमें रुक्मिणी, मित्रविन्दा, शैब्या और जाम्बवतीकी; दक्षिण भागमें सत्यभामा, लक्ष्मणा, सुदेवा और नाग्नजितिकी; उनके अग्र भागएं नन्दबाबा, पृष्ठ भागमें बलभद्र और यशोदा तथा कृष्णके सामने सुरभी, सुनन्दा, सुभद्रा और कामधेनु गौ - इनकी सुवर्णमयी सोल मूर्तियाँ स्थापित करे । उन सबका नाममन्त्र ( यथा - गोवर्द्धनाय नमः आदि ) से पूजन करके
' गवामाधार गोविन्द रुक्मिणीवल्लभ प्रभो । गोपगोपीसमोपेत गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ॥'
से भगवानको और ' रुद्राणां चैव या माता वसूनां दुहिता च या ।
आदित्यानां च भगिनी सा नः शान्तिं प्रयच्छतु ॥'
से गौको अर्घ्य दे एवं
' सुरभी वैष्णवी माता नित्यं विष्णुपदे स्थिता । प्रतिगृह्णातु मे ग्रासं सुरभी मे प्रसीदतु ॥'
से गौको ग्रास दे । इस प्रकार विविध भाँतिके फल, पुष्प, पक्कान्न और रसादिसे पूजन करके बाँसके पात्रोंमे सप्तधान्य और सात मिठाई भरकर सौभाग्यवती स्त्रियोंको दे । इस प्रकार तीन दिन व्रत करे और चौथे दिन प्रातःस्त्रानादि करके गायत्रीके मन्त्रसे तिलोंकी १०८ आहुति देकर व्रतका विसर्जन करे तो इससे सुत, सुख और सम्पतिका लाभ होता है ।