स्याम ! मने चाकर राखो जी ।
गिरधारीलाल ! चाकर राखो जी ॥
चाकर रहसूँ बाग लगासूँ नित उठ दरसण पासूँ ।
बिंद्राबनकी कुंजगलिनमें तेरी लीला गासूँ ॥
चाकरीमें दरसण पाऊँ सुमिरण पाऊँ खरची ।
भाव भगति जागीरी पाऊँ, तीनूँ बाता सरसी ॥
मोर मुकुट पीतांबर सोहै, गल बैजंती माळा ।
बिंद्राबनमें धेनु चरावें, मोहन मुरलीवाळा ॥
हरे हरे नित बाग लगाऊँ, बिच बिच राखूँ क्यारी ।
साँवरियाके दरसण पाऊँ, पहर कुसुम्मी सारी ॥
जोगी आया जोग करणकूँ, तप करणे संन्यासी ।
हरी भजनकूँ साधु आया बिंद्राबनके बासी ॥
मीराके प्रभु गहिर गँभीरा सदा रहो जी धीरा ।
आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें, प्रेमनदीके तीरा ॥