सालगराम ! सुनो बिनती मोरी, यो वरदान दया कर पाऊँ ॥
प्रातः समय उठ मज्जन करके, प्रेम सहित असनान कराऊँ ।
चन्दान धूप दीप तुलसी-दल, बरन-बरनके पुष्प चढ़ाऊँ ॥
आप विराजो प्रभु ! रतन सिंहासन, घण्टा, शंख, मृदंग बजाऊँ ।
एक बूँद चरणामृत लेके, कुटुम्ब सहित बैकुण्ठ पठाऊँ ॥
जो कुछ भोग मिले प्रभु मोकूँ, भोग लगाकर भोजन पाऊँ ।
जो कुछ पाप किया काया से, परकम्माके साथ बहाऊँ ॥
डर लागत मोहि भव-सागरको, जमके द्वार प्रभु ! मैं नहीं जाऊँ ।
’माधोदास’ आस रघुबरकी, हरिदासनको दास कहाऊँ ॥