तू दयालु, दीन हौं, तू दानि हौं भिखारी ।
हौं प्रसिध्द पातकी, तू पापपुंजहारी ॥१॥
नाथ तू अनाथको, अनाथ कौन मोसो ? ।
मो समान आरत नहिं, आरतिहर तोसो ॥२॥
ब्रह्म तू, हौं जीव हौं, तू ठाकुर, हौं चेरो ।
तात, मात, गुरु सखा, तू सब बिधि हितु मेरो ॥३॥
तोहि मोहि नाते अनेक, मानिये जो भावै ।
ज्यों-त्यों ’तुलसी’ कृपालु ! चरन-सरन पावै ॥४॥