मोर मुकुट की देख छटा मैं हो गई सजनी लटा पटा ॥ टेर ॥
मैं जल जमुना भरन जात री, मार्ग रोकत नाहीं हटा ।
हाथ पकड़ मेरी बइयाँ मरोड़ी, बिखर गया मेरा केश लटा ॥
मैं दधि बेचन जाऊँ वृन्दावन, मार्ग रोकत नाहीं हटा ।
बइयाँ पड़क मेरी मटकी फोड़ी, बिखर गया मेरा दही मठा ॥
सास ससुर मोहे बुरी बतावे, नणदल बोलत बचन खटा ।
श्याम बिहारी मेरी बात न बूझै, सखियन में मेरा मान घटा ॥
घुँघरवाले बाल श्याम के, मानो जैसे इन्द्र घटा ।
सूरदास प्रभु के गुन गावे, राधा कृष्ण रटा रटा ॥