विविध - मो सम कौन कुटिल खल क...
’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।
मो सम कौन कुटिल खल कामी ।
जिन तनु दियो ताहि बिसरायो, ऐसो नमकहरामी ॥१॥
भरि-भरि उदर विषयको धायो, जैसे सूकर-ग्रामी ।
हरिजन छाँड़ि हरि विमुखनकी, निसि-दिन करत गुलामी ॥२॥
पापी कौन बढ़ो जग मोते, सब पतितनमें नामी ।
‘सूर’ पतितको ठौर कहाँ है, तुम बिनु श्रीपति स्वामी ॥३॥
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Last Updated : January 22, 2014

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