पछतायेगा, पछतायेगा फिर गया समय नहीं आयेगा ॥ टेर॥
रतन अमोलक मिलिया भारी काँच समझ कर दीना डारी ।
खोजत नाहीं मूरख अनड़ी, फेर कभी नहीं पायेगा ॥१॥
नदी किनारे बाग लगाया, मूरख सोवे ठंडी छाया ।
काल चिडैया सब फल खाया, खाली खेत रह जायेगा ॥२॥
बालूका तू महल बनावे, कर कर जतन सामान सजावे ।
पल में वर्षा आय गिरावे, हाथ मसल रह जायेगा ॥३॥
लगा बजार नगर के माँहीं, सब ही वस्तु मिले सुखदाई ।
ब्रह्मानन्द खरीदी भाई बेग दुकान उठायेगा ॥४॥