आरामके साथी क्या-क्या थे, जब वक्त पड़ा तब कोई नहीं ।
सब दोस्त हैं अपने मतलबके, दुनियाँमें किसीका कोई नहीं ॥ १ ॥
सुल्तान जहाँ माशूक जो थे, सूने हैं पड़े मरघट उनके ।
जहाँ चाहनेवाले लाखों थे, वहाँ रोनेवाला कोई नहीं ॥ २ ॥
जो खूब अकड़के चलते थे, वे आज फिरत मारे-मारे ।
जहाँ फुरसत बात करनकी न थी, बतलानेवाला कोई नहीं ॥ ३ ॥
ये भाई बन्धु लोग सभी, जो दीखत है अपने-अपने ।
इस जगके भीतर धर्म सिवा, आखिर में तुम्हारा कोई नहीं ॥ ४ ॥
अठराह पुराण बनाये थे, पर अन्त बचन ये दो ही कहे ।
पर-पीड़न सम कुछ पाप नहीं, नेकी सम पुण्य है कोई नहीं ॥ ५ ॥