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सूरत दीनानाथसे लगी , तू...

विविध - सूरत दीनानाथसे लगी , तू...

’विविध’ शीर्षकके द्वारा संतोंके अन्यान्य भावोंकी झलक दिखलानेवाली वाणीको प्रस्तुत किया है ।


सूरत दीनानाथसे लगी, तूँ समझ सुहागण सुरता-नार ।

लगनी- लहँगो पहर सुहागण, बीती जाय बहार ।

धन- जीवन है पावणा री, मिलै न दूजी बार ॥ १ ॥

राम-नामको चुड़लो पहिरो , प्रेमको सुरमो सार ।

नक - बेसर हरि-नामकी री, उतर चलोनी परले पार ॥ २ ॥

ऐसे बरको क्या बरुँ, जो जन्में और मर जाय ।

बर बरिये एक साँवरो री, चुड़लो अमर होय जाय ॥ ३ ॥

मैं जान्यो हरि मैं ठग्यो री, हरि ठग ले गयो मोय ।

लख चौरासी मोरचा री, छिनमें गेर् या छै बिगोय ॥ ४ ॥

सुरत चली जहाँ मैं चली री, कृष्ण नाम झंकार ।

अविनाशी की पोल पर जी मीरा करै छै पुकार ॥ ५ ॥

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Last Updated : January 22, 2014

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