तुलसीदास कृत दोहावली - भाग ४

रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत.


भक्तिका स्वरुप

प्रीति राम सों नीति पथ चलिय राग रिस जीति ।
तुलसी संतन के मते इहै भगति की रीति ॥

कलियुगसे कौन नहीं छला जाता

सत्य बचन मानस बिमल कपट रहित करतूति ।
तुलसी रघुबर सेवकहि सकै न कलिजुग धूति ॥
तुलसी सुखी जो राम सों दुखी सो निज करतूति ।
करम बचन मन ठीक जेहि तेहि न सकै कलि धूति ॥

गोस्वामीजीकी प्रेम-कामना

नातो नाते राम कें राम सनेहँ सनेहु ।
तुलसी माँगत जोरि कर जनम जनम सिव देहु ॥
सब साधनको एक फल जेहिं जान्यो सो जान ।
ज्यों त्यों मन मंदिर बसहिं राम धरें धनु बान ॥
जौं जगदीस तौ अति भलो जौं महीस तौ भाग ।
तुलसी चाहत जनम भरि राम चरन अनुराग ॥
परौ नरक फल चारि सिसु मीच डाकिनी खाउ ।
तुलसी राम सनेह को जो फल सो जरि जाउ ॥

रामभक्तके लक्षण

हित सों हित, रति राम सों, रिपु सों बैर बिहाउ ।
उदासीन सब सों सरल तुलसी सहज सुभाउ ॥
तुलसी ममता राम सों समता सब संसार ।
राग न रोष न दोष दुख दास भए भव पार ॥

उद्बोधन

रामहि डरु करु राम सों ममता प्रीति प्रतीति ।
तुलसी निरुपधि राम को भएँ हारेहूँ जीति ॥
तुलसी राम कृपालु सों कहि सुनाउ गुन दोष ।
होय दूबरी दीनता परम पीन संतोष ॥
सुमिरन सेवा राम सों साहब सों पहिचानि ।
ऐसेहु लाभ न ललक जो तुलसी नित हित हानि ॥
जानें जानन जोइऐ बिनु जाने को जान ।
तुलसी यह सुनि समुझि हियँ आनु धरें धनु बान ॥
करमठ कठमलिया कहैं ग्यानी ग्यान बिहीन ।
तुलसी त्रिपथ बिहाइ गो राम दुआरें दीन ॥
बाधक सब सब के भए साधक भए न कोइ ।
तुलसी राम कृपालु तें भलो होइ सो होइ ॥

शिव और रामकी एकता

संकर प्रिय मम द्रोही सिव द्रोही मम दास ।
ते नर करहिं कलप भरि घोर नरक महुँ बास ॥
बिलग बिलग सुख संग दुख जनम मरन सोइ रीति ।
रहिअत राखे राम कें गए ते उचित अनीति ॥

रामप्रेमकी सर्वोत्कृष्टता

जाँय कहब करतूति बिनु जायँ जोग बिन छेम ।
तुलसी जायँ उपाय सब बिना राम पद प्रेम ॥
लोग मगन सब जोगहीं जोग जाँय बिनु छेम ।
त्यों तुलसीके भावगत राम प्रेम बिनु नेम ॥

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Last Updated : January 18, 2013

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