तुलसीदास कृत दोहावली - भाग २५

रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत.


कुसमयका प्रभाव

तुलसी पावस के समय धरी कोकिलन मौन ।
अब तो दादुर बोलिहैं हमें पूछिहै कौन ॥

श्रीरामजीके गुणोंकी महिमा

कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट दंभ पाषंड ।
दहन राम गुन ग्राम जिमि ईंधन अनल प्रचंड ॥

कलियुगमें दो ही आधार है

सोरठा

कलि पाषंड प्रचार प्रबल पाप पावँर पतित ।
तुलसी उभय अधार राम नाम सुरसरि सलिल ॥

भगवत्प्रेम ही सब मङ्गलोंकी खान है

दोहा

रामचंद्र मुख चंद्रमा चित चकोर जब होइ ।
राम राज सब काज सुभ समय सुहावन सोइ ॥
बीज राम गुन गन नयन जल अंकुर पुलकालि ।
सुकृती सुतन सुखेत बर बिलसत तुलसी सालि ॥
तुलसी सहित सनेह नित सुमिरहु सीता राम ।
सगुन सुमंगल सुभ सदा आदि मध्य परिनाम ॥
पुरुषारथ स्वारथ सकल परमारथ परिनाम ।
सुलभ सिद्धि सब साहिबी सुमिरत सीता राम ॥

दोहावलीके दोहोंकी महिमा

मनिमय दोहा दीप जहँ उर घर प्रगट प्रकास ।
तहँ न मोह तम भय तमी कलि कज्जली बिलास ॥
का भाषा का संसकृत प्रेम चाहिऐ साँच ।
काम जु आवै कामरी का लै करिअ कुमाच ॥

रामकी दीनबन्धुता

मनि मानिक महँगे किए सहँगे तृन जल नाज ।
तुलसी एते जानिऐ राम गरीब नेवाज ॥

॥ इति ॥

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Last Updated : January 18, 2013

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