तुलसीदास कृत दोहावली - भाग ९

रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत.


श्रीरामजीके स्वरुपकी अलौकिकता

सोरठा

राम सरूप तुम्हार बचन अगोचर बुद्धिपर ।
अबिगत अकथ अपार नेति नेति नित निगम कह ॥

ईश्वर-महिमा

दोहा

माया जीव सुभाव गुन काल करम महदादि ।
ईस अंक तें बढ़त सब ईस अंक बिनु बादि ॥

श्रीरामजीकी भक्तवत्सलता

हित उदास रघुबर बिरह बिकल सकल नर नारि ।
भरत लखन सिय गति समुझि प्रभु चख सदा सुबारि ॥

सीता,लक्ष्मण और भरतके रामप्रेमकी अलौकिकता

सीय सुमित्रा सुवन गति भरत सनेह सुभाउ ।
कहिबे को सारद सरस जनिबे को रघुराउ ॥
जानि राम न कहि सके भरत लखन सिय प्रीति ।
सो सुनि गुनि तुलसी कहत हठ सठता की रीति ॥
सब बिधि समरथ सकल कह सहि साँसति दिन राति ।
भलो निबाहेउ सुनि समुझि स्वामिधर्म सब भाँति ॥

भरत-महिमा

भरतहि होइ न राजमदु बिधि हरिहर पद पाइ ।
कबहुँ कि काँजी सीकरनि छीरसिंधु बिनसाइ ॥
संपति चकई भरत चक मुनि आयस खेलवार ।
तेहि निसि आश्रम पिंजराँ राखे भा भिनुसार ॥
सधन चोर मग मुदित मन धनी गही ज्यों फेंट ।
त्यों सुग्रीव बिभीषनहिं भई भरतकी भेंट ॥
राम सराहे भरत उठि मिले राम सम जानि ।
तदपि बिभीषन कीसपति तुलसी गरत गलानि ॥
भरत स्याम तन राम सम सब गुन रूप निधान ।
सेवक सुखदायक सुलभ सुमिरत सब कल्यान ॥

लक्ष्मणमहिमा

ललित लखन मूरति मधुर सुमिरहु सहित सनेह ।
सुख संपति कीरति बिजय सगुन सुमंगल गेह ॥

शत्रुघ्नमहिमा

नाम सत्रुसूदन सुभग सुषमा सील निकेत ।
सेवत सुमिरत सुलभ सुख सकल सुमंगल देत ॥

कौसल्यामहिमा

कौसल्या कल्यानमइ मूरति करत प्रनाम ।
सगुन सुमंगल काज सुभ कृपा करहिं सियाराम ॥

सुमित्रामहिमा

सुमिरि सुमित्रा नाम जग जे तिय लेहिं सनेम ।
सुअन लखन रिपुदवन से पावहिं पति पद प्रेम ॥

सीतामहिमा

सीताचरन प्रनाम करि सुमिरि सुनाम सुनेम ।
होहिं तीय पतिदेवता प्राननाथ प्रिय प्रेम ॥

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Last Updated : January 18, 2013

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