तुलसीदास कृत दोहावली - भाग १६

रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत.


सज्जन और दुर्जनका भेद

सुजन सुतरु बन ऊख सम खल टंकिका रुखान ।
परहित अनहित लागि सब साँसति सहर समान ॥
पिअहि सुमन रस अलिल बिटप काटि कोल फल खात ।
तुलसी तरुजीवी जुगल सुमति कुमति की बात ॥

अवसरकी प्रधानता

अवसर कौड़ी जो चुकै बहुरि दिएँ का लाख ।
दुइज न चंदा देखिऐ उदौ कहा भरि पाख ॥

भलाई करना बिरले ही जानते हैं

ग्यान अनभले को सबहि भले भलेहू काउ ।
सींग सूँड़ रद लूम नख करत जीव जड़ घाउ ॥

संसारमें हित करनेवाले कम है

तुलसी जग जीवन अहित कतहुँ कोउ हित जानि ।
सोषक भानु कृसानु महि पवन एक घन दानि ॥
सुनिअ सुधा देखिअहिं गरल सब करतूति कराल ।
जहँ तहँ काक उलूक बक मानस सकृत मराल ॥
जलचर थलचर गगनचर देव दनुज नर नाग ।
उत्तम मध्यम अधम खल दस गुन बढ़त बिभाग ॥
बलि मिस देखे देवता कर मिस मानव देव ।
मुए मार सुबिचार हत स्वारथ साधन एव ॥
सुजन कहत भल पोच पथ पापि न परखइ भेद ।
करमनास सुरसरित मिस बिधि निषेध बद बेद ॥

वस्तुही प्रधान है, आधार नहीं

मनि भाजन मधु पारई पूरन अमी निहारि ।
का छाँड़िअ का संग्रहिअ कहहु बिबेक बिचारि ॥

प्रीति और वैरकी तीन श्रेणियाँ

उत्तम मध्यम नीच गति पाहन सिकता पानि ।
प्रीति परिच्छा तिहुन की बैर बितिक्रम जानि ॥

जिसे सज्जन ग्रहण करते है,उसे दुर्जन त्याग देते हैं

पुन्य प्रीति पति प्रापतिउ परमारथ पथ पाँच ।
लहहिं सुजन परिहरहिं खल सुनहु सिखावन साँच ॥

प्रकृतिके अनुसार व्यवहारका भेद भी आवश्यक हैं

नीच निरादरहीं सुखद आदर सुखद बिसाल ।
कदरी बदरी बिटप गति पेखहु पनस रसाल ॥

अपना आचरण सभी को अच्छा लगता है

तुलसी अपनो आचरन भलो न लागत कासु ।
तेहि न बसात जो खात नित लहसुनहू को बासु ॥

भाग्यवान कौन है ?

बुध सो बिबेकी बिमलमति जिन्ह के रोष न राग ।
सुहृद सराहत साधु जेहि तुलसी ताको भाग ॥

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Last Updated : January 18, 2013

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