तुलसीदास कृत दोहावली - भाग १२

रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत.


संतोषपूर्वक घरमें रहना उत्तम है

दिएँ पीठि पाछें लगै सनमुख होत पराइ ।
तुलसी संपति छाँह ज्यों लखि दिन बैठि गँवाइ ॥

विषयों की आशा ही दुःख का मूल है

तुलसी अद्भूत देवता आसा देवी नाम ।
सेएँ सोक समर्पई बिमुख भएँ अभिराम ॥

मोह-महिमा

सोई सेंवर तेइ सुवा सेवत सदा बसंत ।
तुलसी महिमा मोह की सुनत सराहत संत ॥

बिषय-सुखकी हेयता

करत न समुझत झूठ गुन सुनत होत मति रंक ।
पारद प्रगट प्रपंचमय सिद्धिउ नाउँ कलंक ॥

लोभकी प्रबलता

ग्यानी तापस सूर कबि कोबिद गुन आगार ।
केहि कै लोभ बिडंबना कीन्हि न एहिं संसार ॥

धन और ऐश्वर्यके मद तथा कामकी व्यापकता

श्रीमद बक्र न कीन्ह केहि प्रभुता बधिर न काहि ।
मृगलोचनि के नैन सर को अस लाग न जाहि ॥

मायाकी फौज

ब्यापि रहेउ संसार महुँ माया कटक प्रचंड ।
सेनापति कामादि भट दंभ कपट पाषंड ॥

काम,क्रोध,लोभकी प्रबलता

तात तीनि अति प्रबल खल काम क्रोध अरु लोभ ।
मुनि बिग्यान धाम मन करहिं निमिष महुँ छोभ ॥

काम,क्रोध,लोभके सहायक

लोभ कें इच्छा दंभ बल काम के केवल नारि ।
क्रोध के परुष बचन बल मुनिबर कहहिं बिचारि ॥

मोहकी सेना

काम क्रोध लोभादि मद प्रबल मोह कै धारि ।
तिन्ह महँ अति दारुन दुखद मायारुपी नारि ॥

अग्नि,समुद्र,प्रबल स्त्री और कालकी समानता

काह न पावक जारि सक का न समुद्र समाइ ।
का न करै अबला प्रबल केहि जग कालु न खाइ ॥

स्त्री झगड़े और मृत्युकी जड़ है

जनमपत्रिका बरति कै देखहु मनहिं बिचारि ।
दारुन बैरी मीचु के बीच बिराजति नारि ॥

उद्बोधन

दीपसिखा सम जुबति तन मन जनि होसि पतंग ।
भजहि राम तजि काम मद करहि सदा सतसंग ॥

गृहासक्ति श्रीरघुनाथजीके स्वरूपके ज्ञानमें बाधक है

काम क्रोध मद लोभ रत गृहासक्त दुखरूप ।
ते किमि जानहिं रघुपतिहि मूढ़ परे भव कूप ॥

काम-क्रोधादि एक-एक अनर्थकारक है फिर सबकी

तो बात ही क्या है

ग्रह ग्रहीत पुनि बात बस तेहि पुनि बीछी मार ।
तेहि पिआइअ बारुनी कहहु काह उपचार ॥

किसके मनको शान्ति नहीं मिलती ?

ताहि कि संपति सगुन सुभ सपनेहुँ मन बिश्राम ।
भूत द्रोह रत मोहबस राम बिमुख रति काम ॥

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Last Updated : January 18, 2013

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