तुलसीदास कृत दोहावली - भाग ८
रामभक्त श्रीतुलसीदास सन्त कवि आणि समाज सुधारक होते. तुलसीदास भारतातील भक्ति काव्य परंपरेतील एक महानतम कवि होत.
रामराज्यकी महिमा
राम राज राजत सकल धरम निरत नर नारि ।
राग न रोष न दोष दुख सुलभ पदारथ चारि ॥
राम राज संतोष सुख घर बन सकल सुपास ।
तरु सुरतरु सुरधेनु महि अभिमत भोग बिलास ॥
खेती बनि बिद्या बनिज सेवा सिलिप सुकाज ।
तुलसी सुरतरु सरिस सब सुफल राम कें राज ॥
दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज ।
जीतहु मनहिं सुनिअ अस रामचंद्र कें राज ॥
कोपें सोच न पोच कर करिअ निहोर न काज ।
तुलसी परमिति प्रीति की रीति राम कें राज ॥
श्रीरामकी दयालुता
मुकुर निरखि मुख राम भ्रू गनत गुनहि दै दोष ।
तुलसी से सठ सेवकन्हि लखि जनि परहिं सरोष ॥
श्रीरामकी धर्मधुरन्धरता
सहसनाम मुनि भनित सुनि तुलसी बल्लभ नाम ।
सकुचित हियँ हँसि निरखि सिय धरम धुरंधर राम ॥
श्रीसीताजीका अलौकिक प्रेम
गौतम तिय गति सुरति करि नहिं परसति पग पानि ।
मन बिहँसे रघुबंसमनि प्रीति अलौकिक जानि ॥
श्रीरामकी कीर्ति
तुलसी बिलसत नखत निसि सरद सुधाकर साथ ।
मुकुता झालरि झलक जनु राम सुजसु सिसु हाथ ॥
रघुपति कीरति कामिनी क्यों कहै तुलसीदासु ।
सरद अकास प्रकास ससि चारु चिबुक तिल जासु ॥
प्रभु गुन गन भूषन बसन बिसद बिसेष सुबेस ।
राम सुकीरति कामिनी तुलसी करतब केस ॥
राम चरित राकेस कर सरिस सुखद सब काहु ।
सज्जन कुमुद चकोर चित हित बिसेषि बड़ लाहु ॥
रघुबर कीरति सज्जननि सीतल खलनि सुताति ।
ज्यों चकोर चय चक्कवनि तुलसी चाँदनि राति ॥
रामकथाकी महिमा
राम कथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु ।
तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु ॥
स्याम सुरभि पय बिसद अति गुनद करहिं सब पान ।
गिरा ग्राम्य सिय राम जस गावहिं सुनहिं सुजान ॥
हरि हर जस सुर नर गिरहुँ बरनहिं सुकबि समाज ।
हाँड़ी हाटक घटित चरु राँधे स्वाद सुनाज ॥
राममहिमाकी अज्ञेयता
तिल पर राखेउ सकल जग बिदित बिलोकत लोग ।
तुलसी महिमा राम की कौन जानिबे जोग ॥
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Last Updated : January 18, 2013
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