है कुई ऐसा ये दुनयामों जाकर बोले बात ।
देखो बाबा भीमा किनारे उनसे जोरो हात ॥१॥
नजरभर देखो नजरभर देखो ।
कछु खरच नहीं मुफत नाम चाखो ॥ध्रु०॥
ओही मुर्शद ओही मौला वोही बना है पीर ।
अब कांहा पकरू निजाम रोजा ओही भरा भरपूर ॥२॥
जंगल जाना उसके खातर सोही मीठा मुखमों ।
अल्ला मौला राम रहिम दोनो भरा तनमों ॥३॥
कहत कबीर सुनो भाई साधु बिरला जाने मनमों ।
भाव भगतसे साई खडा देखो जाके पंढरपुरमों ॥४॥