काया नहीं तेरी नहीं तेरी । मत कर मेरी मेरी ॥ध्रु०॥
ये तो दो दिनकी जिंदगानी । जैसा फथर उपर पानी ।
ये तो होवेगी खुरबानी ॥१॥
जैसा रंग तरंग मिलावे । येतो पलख पिछे उड जावे ।
अंते कोई काम नहीं आवे ॥२॥
सुन बात कहूं परमानी । व्हांकी क्या करता गुमानी ।
तुम त बडे है बैमानी ॥३॥
अब मत गाफल रहेना बंद । झूठा लगा जनतका धंदा ।
पडा मोहकालका फंदा ॥४॥
कहत कबीरा सुन नर ग्यानी । ये शिख हृदयमें मानी ।
तेरेकूं बात कही समजानी ॥५॥