भजन - अब का सोवै सखि । जाग जाग ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


अब का सोवै सखि । जाग जाग ।

रैन बिहात जातरस-बिरियाँ, चोलीके बँद ताग ताग ॥

जोबन उमँग सकल कर बौरी आन-कान सब त्याग त्याग ।

ललितकिसोरी लूट अनँदवा, पीतमके गर लाग लाग ॥

लटक लटक मनमोहन आवनि ।

झूमि झूमि पग धरत भूमिपर गति मातंग लजावनि ॥

गोखुर-रेनुअंग अँग मंडित उपमा दृग सकुचावनि ।

नव घनपै मनु झीन बदरिया, सोभा-रस बरसावनि ॥

बिगसति मुखलौं कानि दामिनी दसनावलि दमकावनि ।

बीच-बीच घनघोर माधुरी, मधुरी बेन बजावनि ॥

मुकतमाल उर लसी छबीली, मनु बग-पाँति सुहावन ।

बिंदु गुलाल गुपाल-कपोलन, इंद्रबधू छबि छावनि ॥

रुनन झुनन किंकिनि धुनि मानों हंसनिकी चुहचावनि ।

बिलुलित अलक धूरि धूसरतन, गमन लोटि भुव आवनि ॥

जँघिया लसनि कनक कछनी पै, पटुका ऐंचि बँधावनि ।

पीताम्बर फहरानि मुकुतछबि, नटवर बेस बनावनि ॥

हलनि बुलाक अधर तिरछौंही बीरी सुरँग रचावनि ।

ललितकिसोरी फूल-झरनियाँ मधुर-मधुर बतरावनि ॥

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Last Updated : December 22, 2007

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