मुरकि मुरकि चितवनि चित चोरै ।
ठुमकि चलन हेरि दै बोलनि, पुलकनि नंदकिसोरै ॥
सहरावनि गैयान चौंकनी, थपकन कर बनमाली ।
गुहरावनि लै नाम सबनकौ धौरी धूमर आली ॥
चुचकारनि चट झपटि बिचुकनी, हूँ हूँ रहौ रँगीली ।
नियरावनि चोरवनि मगहीमें, झुकि बछियान छबीली ॥
फिरकैयाँ लै निरत अलापन, बिच-बिच तान रसीली ।
चितवनि ठिटुकि उढ़कि गैयासों, सीटी भरनि रसीली ॥
चाँपन अधर सैन दै चंचल, नैनन मेलि कटारी ।
जोरन कर हा हा करि मोहन, मुसकन ऐंड़ि बिहारी ॥
बाँह उठाय उचकि पग टेरनि, इतै कितै हौ स्यामा ।
निकसी नई आज तैं बनरिहु, मोरे ढिग अभिरामा ॥
हरुवे खोर साँकरी जुवतिन, कहत गुलाम तिहारौ ।
मिलियौ रैन मालती कुंजै तहँ पिक अरुन निहारौ ॥
काहू झटक चीर लकुटीतें, काहू पगै दबावै ।
काहू अंग परसि काहू तन, नैनन कोर नचावै ॥
उरझत पट नूपुरसों पाछे झुकि झुकि कै सुरझावै ।
ललितकिसोरी ललित लाड़िली दृग संकेत बतावै ॥