नैन चकोर, मुखचंदहूको बारि डारौं,
बारि डारौं चित्तहिं मनमोहन चितचोरपै ।
प्रानहूकों बारि डारौं हँसन दसन लाल,
हेरन कटिलता और लोचनकी कोरपै ॥
बारि डारौं मनहिं सुअंग अंग स्यामा स्याम,
महल मिलाप रस रासकी झकोरपै ।
अतिहि सुघर बर सोहत त्रिभंगीलाल
सरबस बारौं वा ग्रीवाकी मरोरपै ॥
अब तौ तेरिय हाथ बिकानी ।
मृदु बोलन मुसक्यान माधुरी, तन मन नैन समानी ॥
लोक-लाज, कुल कानि तजी सब, जामें तुव रुचि चीनी ।
धरम करम ब्रत नेम सबै सो, तोई रँग रस भीनी ॥
तुव कारन यह भेष बनायो प्रगट उघरि करि नाची ।
नाउँ कुनाउँ धरौ किन कोऊ हौं नाहिन मति काँची ॥
होनी होय सो होय भले ही, तनमन लगन लगी है ।
ललितकिसोरी लाल तिहारे, मति अनुराग पगी है ॥