भजन - लाभ कहा कंचन तन पाये । भ...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


लाभ कहा कंचन तन पाये ।

भजे न मृदुल कमल-दल-लोचन, दुख-मोचन हरि हरखि न ध्याये ॥१॥

तन-मन-धन अरपन ना कीन्हों, प्रान प्रानपति गुननि न गाये ।

जोबन, धन कलधौत-धाम सब, मिथ्या आयु गँवाय गँवाये ॥२॥

गुरुजन गरब, बिमुख-रँग-राते डोलत सुख संपति बिसराये ।

ललितकिसोरी मिटै ताप ना, बिनु दृढ़ चिंतामनि उर लाये ॥३॥

मोहनके अति नैन नुकीले ।

निकसे जात पार हियराके, निरखत निपट गँसीले ॥

ना जानौं बेधन अनियतकी तीन लोकते न्यारी ।

ज्यों-ज्यों छिदत मिठास हियेमें सुख लागत सुकुमारी ॥

जबसों जमुना कूल बिलोक्यो, सब निसि-नींद न आवै ।

उठत मरोर बंक चितवनियाँ, उर उत्पात मचावै ॥

ललितकिसोरी आज मिलै, जहवाँ कुलकानि बिचारौं ।

आग लगै यह लाज निगोड़ी, दृग भरि स्याम निहारौं ।

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Last Updated : December 22, 2007

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