कार्तिक शुक्लपक्ष व्रत - यमद्वितीया

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


यमद्वितीया -

कार्तिक शुक्ल द्वितीयाको यमका पूजन किया जाता है, इससे यह ' यमद्वितीया ' कहलाती है । इस दिन वणिक् - वृत्ति - वाले व्यवहारदक्ष वैश्य मसिपात्रादिका पूजन करते हैं, इस कारण इसे ' कलमदानपूजा ' भी कहते हैं और इस दिन भाई अपनी बहिनके घर भोजन करते हैं, इसलिये यह ' भइया दूज ' नामसे भी विख्यात है । हेमाद्रिके मतसे यह द्वितीया मध्याह्नव्यापिनी पूर्वविद्धा उत्तम होती है । स्मार्तमतमें आठ अपराह्णव्यापिनी अधिक अच्छी होती है । यही उचित है । व्रतीको चाहिये कि प्रातःस्त्रानादिके अनन्तर कर्मकालके समय अक्षतादिके अष्टदलकमलपर गणेशादिका स्थापन करके

' मम यमराजप्रीतये यमपूजनम् - व्यवसाये व्यवहारे वा सकलार्थसिद्धये

मसिपात्रादिनां पूजनम् - भ्रातुरायुष्यवृद्धये मम सौभाग्यवृद्धये च भ्रातृपूजनं च करिष्ये ।'

यह संकल्प करके गणेशजीका पूजन करनेके अनन्तर यमका, चित्रगुप्तका, यमदूतोंका और यमुनाका पूजन करे तथा

' धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज । पाहि मां किङ्करैः सार्धं सूर्यपुत्र नमोऽस्तु ते ॥'

से ' यम ' की -

' यमस्वसर्नमस्तेऽस्तु यमुने लोकपूजिते । वरदा भव मे नित्यं सूर्यपुत्रि नमोऽस्तु ते ॥'

से ' यमुना ' की और

' मसिभाजनसंयुक्तं ध्यायेत्तं च महाबलम् । लेखनीपट्टिकाहस्तं चित्रगुप्तं नमाम्यहम् ॥'

से ' चित्रगुप्त ' की प्रार्थना करके शङ्खमें या ताँबेके अर्घ्यपात्रमें अथवा अञ्जलिमें जल, पुष्प और गन्धाक्षत लेकर

' एह्येहि मार्तण्डज पाशहस्त यमान्तकालोकधरामरेश । भ्रातृद्वितीयाकृतदेवपूजां गृहाण चार्घ्यं भगवन्नमोऽस्तु ते ॥'

से यमराजको ' अर्घ्य ' दे । ...... उसी जगह मसिपात्र ( दावात ) , लेखनी ( कलम ) और राजमुद्रा ( मुख्य मुहर ) स्थापन करके

' मसिपात्राय नमः ।' ' लेखन्यै नमः ।' और ' राजमुद्रायै नमः ।'

इन नाममन्त्नोसे उनका पूजन करके

' मसि त्वं लेखनीयुक्तचित्रगुप्तशयस्थिता । सदक्षराणां पत्रे च लेख्यं कुरु सदा मम ॥'

से ' मसिपात्र ' की,

' या कुन्द्रन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणा वरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।

या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥'

' तरुणशकलमिन्दोर्बिभ्रती शुभ्रकान्तिः कुचभरनमिताङी संनिषण्णा सिताब्जे ।

निजकरकमलोद्यखनीपुस्तकश्रीः सकलविभवसिद्धयै पातु वागदेवता नः ॥'

' कृष्णानने कृष्णजिह्वे चित्रगुप्तशयस्थिते । प्रार्थनेयं गृहाण त्वं सदैव वरदा भव ॥'

से ' लेखनी ' की और

' हिमचन्दनकुन्देन्दुकुमुदाम्भोजसंनिभे । प्रार्थनेयं गृहाणेमां नमस्ते राजमुद्रिके ॥'

से ' राजमुद्रा ' ( मुहर ) की प्रार्थना करके सफेद कागजपर श्रीरामजी,

' श्रीरामो जयति, गणपतिर्जयति, शारदायै नमः और लक्ष्म्यै नमः'

आदि लिखे । इसके अतिरिक्त छोटी भगिनीके घर जाकर बहिनकी की हुई पूजा ग्रहण करे । बहिनको चाहिये कि वह भाईको शुभासनपर बिठाकर उसके हाथ - पैर धुलाये । गन्धादिसे उसका पूजन करे और दाल, भात, फुलके, कढ़ी, सीरा, पूरी, चूरमा अथवा लड्ड़ू, जलेबी, घेवर आदि यथासामर्थ्य उत्तम पदार्थोंका भोजन कराये और

' भ्रातस्तवानुजाताहं भुड‍ःक्ष्व भक्तमिमं शुभम् । प्रीतये यमराजस्य यमुनाया विशेषतः ॥'

से उसका अभिनन्दन करे । इसके बाद भाई बहिनको यथासामर्थ्य अन्न - वस्त्र - आभूषण और सुवर्ण - मुद्रादि द्रव्य देकर उससे शुभाशिष प्राप्त करे । ...... यदि सहजा ( सगी ) बहिन न हो तो पितृव्य - पुत्री ( काकाकी कन्या ), मातुल - पुत्री ( मामाकी बेटी ) या मित्रभगिनी ( मित्रकी बहिन ) - इनमें जो हो उसके यहाँ भोजन करे । यदि यमद्वितीयाको यमुनाके किनारेपर बहिनके हाथका बनाया भोजन करे तो उससे भाईकी आयुवृद्धि और बहिनके अहिवात ( सौभाग्य ) की रक्षा होती है ।

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Last Updated : January 22, 2009

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